Thursday 8 May 2014

अमीरों और नेताओं को क्यों नहीं होता "पीलिया"…… ?


एक ही पार्टी को हैट्रिक देना अब महँगा पड़ रहा है छत्तीसगढ़ियों को। पूरा छत्तीसगढ़ पीलिया कि चपेट में है। सरकारी अस्पताल में बेड कम पड़ रहे हैं।  निजी अस्पताल वाले ऐसे मरीज ले ही नहीं रहे।  हैट्रिक से गदगद नेताओं को इसमें भी बतोलेबाजी सूझ रही है। भावना शून्य होते जा रहे हैं नेता। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि अमीरों और नेताओं को क्यों नहीं होता "पीलिया"? सरकार का काम सबको साथ लेकर चलना होता है। यहाँ ऐसा नहीं है।  मंत्रियों और अफसरों के रहवासी इलाकों में साफ़ सफाई दुरुस्त है। राजधानी के नया मंत्रालय में पीलिया पीड़ितों के लिये दस बिस्तर का एक अस्पताल खोल दिया गया है।  आम आदमी से कोई सरोकार ही नहीं है मंत्रियों और अफसरों को। आम आदमी मरता है तो मर जाये इनका क्या ? आम आदमी सुबह शाम की जिजीविषा देखे या प्रशासन से उपहार में मिले पीलिया को। जो मिल जा रहा है खा रहे हैं , जैसा मिल रहा है पी रहे हैं। सरकार से लेकर नगर निगम तक , सब तमाशा देख रहे हैं। अब तो इसी नाम से बंदरबांट करने के लिये सरकार ने बीस करोड भी देने की घोषणा कर दी है। 
स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल और महिला एवं विकास मंत्री रमशिला साहू इस मामले में बुरे फंस गये हैं। पूरे देश को तोता छाप गुड़ाखू की सौगात देने वाले स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने आखिर गलत क्या कहा? लोग कुछ भी खाते हैं कुछ भी पीते हैं।  इनमें ऎसे लोग भी शामिल होंगे जो गुड़ाखू भी करते होंगे। शासन प्रशासन इसमें क्या करेगा ? अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है। जैसे स्वास्थ्य मंत्री को बिलासपुर जाना आना होता है तो ट्रेन का सहारा ले लेते हैं। उन्हें पता है छत्तीसगढ़ की सड़कों की हालत। उनसे यह नहीं होता की अपने लोक निर्माण मंत्री से कहकर सड़कें दुरुस्त करवा लें। वही सन्देश वह जनता को भी दे बैठे। अगर सब भगवान की मर्जी से होता है तो आप बीच में क्यों आड़े आ रहे हैं।  स्वास्थ्य विभाग नहीं सम्हल रहा तो दे दीजिये इस्तीफ़ा।  भगवान सब देख लेंगे। पीलिया से पूरा छत्तीसगढ़ थर्राया हुआ है और आप चाहते हैं कि मीडिया उनसे झगड़ालू सवाल न करे ? उन्हें गोदी में बिठाये? उनकी आरती उतारे ? गुणगान करे उनका? मीडिया अपना काम कर रहा है और स्वास्थ्य मंत्री को भी अपना काम गंभीरता से करना चाहिए। यह समय उत्तेजना का नहीं, भावुक होकर मरीजों के साथ होने का है। मरीजों को त्वरित उपचार देने का है। 
 महिला एवं विकास मंत्री रमशिला साहू  को भी पता नहीं क्या सूझी ? मीडिया को दानव कह दिया। या तो वे दानव का अर्थ नहीं जानती या सत्ता का  नशा उनके भी सिर चढ गया है।  पता नहीं नेताओं को सुध कब आयेगी। वैसे पीलिया से लड़ने के लिये पार्षद से लेकर महापौर और विधायकों को भी गंभीर होना होगा। यहाँ सबको दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा। सबको साथ मिलकर इस जानलेवा बीमारी से लड़ना होगा।  पीलिया के बारे में जागरूक करने के अलावा अब साफ़ सफाई पर और भी गंभीर होने पड़ेगा। और ध्यान भी रखना होगा कि अमीरों और नेताओं को भी हो सकता है 
 "पीलिया"। इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन सहित सब लोग अब आगे आ ही गये हैं।  पैसों की तंगी भी नहीं है।  बस अब ज़रुरत है हौसले और हिम्मत की। 

Thursday 13 May 2010

एक स्पेशल स्टोरी

एक बार फिर साबित हो गया की सत्य की हमेशा जीत होती है, तमाम ब्लोगेर्स की मदद से आखिरकार एक और जीत हासिल हुई हिंदुस्तान न्यूज़ के पत्रकारों को। बड़ी-बड़ी बात करने वालों को आखिर झुकना पड़ा और हड़ताली कर्मचारियों की 'ससम्मान' वापसी संभव हो ही गयी। कैसे हो गये हैं आज कल के पत्रकार ? मैं चार दिन से ब्लॉग नहीं लिख पा रहा था, टाइम टुडे की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते करते तीन दिन बीत गया, एक आश्चर्य जनक बात ये है की हिन्दुस्तान न्यूज़ में लौटने के बाद वहां के किसी पत्रकार ने मुझे किसी भी माध्यान से ये नहीं बताया की उनकी वापसी हो गयी है।
तीन दिन पहले जब श्रम विभाग के दफ्तर में सभी ने मुझे फोन करके बुलाया था। श्रम आयुक्त ने वहीँ बताया था की आज सबको पारिश्रमिक के लिए बुलाया जायेगा, सब जाना और अपना अब तक का हिसाब बराबर कर लेना , श्रम विभाग की कागजी कार्यवाही तो चलती रहेगी। यहीं उन्होंने सुझाव दिया की अगर प्रबंधन आप लोगों को वापस लेने चाहे तो क्या करोगे मैंने ही कहा था की चुपचाप लौट जाना। काम करने में कोई दिक्कत थोड़े ही है। दिक्कत है रेजा कुली टाइप भुगतान की। अगर वो लोग सेलरी बेस पर रखने को तैयार हैं तो लौट जाने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। खैर॥ सब काम पर लौट गये हैं। ब्लॉग लिख लिख कर मैंने और पढ़ पढ़ कर आप लोगों ने जो वातावरण तैयार किया उसके लिए आप सभी का आभारी हूँ।
एक बात जो मुझे अन्दर तक चुभ गयी वो ये इन हडताली कर्मचारियों के सामने अनिल पुसदकर ने मेरे बारे में की बातें झूठ कहीं। अनिल पुसदकर ने उनसे कहा की अह्फाज़ खुद यहाँ आना चाहता था, इसीलिये ये हड़ताल करवाई। अब आप खुद सोचिये की times now जैसा अंतर्राष्ट्रीय चैनल छोड़कर ३४ मोहल्ले में दिखने वाले चैनल में में मेरी क्या रूचि हो सकती है। हड़ताल इसीलिये हुई क्योंकि खुद प्रेस क्लब के कथित अध्यक्ष ने दिहाड़ी व्यवस्था वहां लागू करवाई थी, खुद शोषण पर उतर आये थे। मैंने तो सिर्फ ब्लॉग के माध्यम से पत्रकारों की पीड़ा को सामने रखा था। अब तो आप मुझे रोज़ एक स्पेशल स्टोरी के साथ रीजनल चैनल टाइम टुडे पर भी देख सकते हैं। टाइम टुडे ने मुझे वरिष्ठता के आधार पर सीनिअर corrospondent बनाया है, शहीदों के शव को चीर घर वापस भिजवाने और शहीदों के शव घर नहीं पहुंचे और सी एम् हाउस में जश्न वाली खबर कवर करके आपको साबित किया है। आज भी रायपुर के सभापति को जेल में मोबाइल पर बात करने वाली खबर भी मैंने ही कवर की और बाँट दिया। अपनी कुंठा अनिल पुसदकर ने मुझ पर ठोंक दी। मुंह से पत्रकारिता नहीं होती। आप तो श्रम विभाग , विधुत विभाग और आयकर विभाग को निपटाने वाले थे, निपटा लेते, यहाँ तो बाप का राज है, पूरा छत्तीसगढ़ राज्य प्रेस क्लब जैसा थोड़े ही है, तीनों विभाग अपनी आदी में आ gaye तो आप लोग तो भाग जाओगे , भुगतेगा राजेश शर्मा।