Thursday 13 May 2010

एक स्पेशल स्टोरी

एक बार फिर साबित हो गया की सत्य की हमेशा जीत होती है, तमाम ब्लोगेर्स की मदद से आखिरकार एक और जीत हासिल हुई हिंदुस्तान न्यूज़ के पत्रकारों को। बड़ी-बड़ी बात करने वालों को आखिर झुकना पड़ा और हड़ताली कर्मचारियों की 'ससम्मान' वापसी संभव हो ही गयी। कैसे हो गये हैं आज कल के पत्रकार ? मैं चार दिन से ब्लॉग नहीं लिख पा रहा था, टाइम टुडे की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते करते तीन दिन बीत गया, एक आश्चर्य जनक बात ये है की हिन्दुस्तान न्यूज़ में लौटने के बाद वहां के किसी पत्रकार ने मुझे किसी भी माध्यान से ये नहीं बताया की उनकी वापसी हो गयी है।
तीन दिन पहले जब श्रम विभाग के दफ्तर में सभी ने मुझे फोन करके बुलाया था। श्रम आयुक्त ने वहीँ बताया था की आज सबको पारिश्रमिक के लिए बुलाया जायेगा, सब जाना और अपना अब तक का हिसाब बराबर कर लेना , श्रम विभाग की कागजी कार्यवाही तो चलती रहेगी। यहीं उन्होंने सुझाव दिया की अगर प्रबंधन आप लोगों को वापस लेने चाहे तो क्या करोगे मैंने ही कहा था की चुपचाप लौट जाना। काम करने में कोई दिक्कत थोड़े ही है। दिक्कत है रेजा कुली टाइप भुगतान की। अगर वो लोग सेलरी बेस पर रखने को तैयार हैं तो लौट जाने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। खैर॥ सब काम पर लौट गये हैं। ब्लॉग लिख लिख कर मैंने और पढ़ पढ़ कर आप लोगों ने जो वातावरण तैयार किया उसके लिए आप सभी का आभारी हूँ।
एक बात जो मुझे अन्दर तक चुभ गयी वो ये इन हडताली कर्मचारियों के सामने अनिल पुसदकर ने मेरे बारे में की बातें झूठ कहीं। अनिल पुसदकर ने उनसे कहा की अह्फाज़ खुद यहाँ आना चाहता था, इसीलिये ये हड़ताल करवाई। अब आप खुद सोचिये की times now जैसा अंतर्राष्ट्रीय चैनल छोड़कर ३४ मोहल्ले में दिखने वाले चैनल में में मेरी क्या रूचि हो सकती है। हड़ताल इसीलिये हुई क्योंकि खुद प्रेस क्लब के कथित अध्यक्ष ने दिहाड़ी व्यवस्था वहां लागू करवाई थी, खुद शोषण पर उतर आये थे। मैंने तो सिर्फ ब्लॉग के माध्यम से पत्रकारों की पीड़ा को सामने रखा था। अब तो आप मुझे रोज़ एक स्पेशल स्टोरी के साथ रीजनल चैनल टाइम टुडे पर भी देख सकते हैं। टाइम टुडे ने मुझे वरिष्ठता के आधार पर सीनिअर corrospondent बनाया है, शहीदों के शव को चीर घर वापस भिजवाने और शहीदों के शव घर नहीं पहुंचे और सी एम् हाउस में जश्न वाली खबर कवर करके आपको साबित किया है। आज भी रायपुर के सभापति को जेल में मोबाइल पर बात करने वाली खबर भी मैंने ही कवर की और बाँट दिया। अपनी कुंठा अनिल पुसदकर ने मुझ पर ठोंक दी। मुंह से पत्रकारिता नहीं होती। आप तो श्रम विभाग , विधुत विभाग और आयकर विभाग को निपटाने वाले थे, निपटा लेते, यहाँ तो बाप का राज है, पूरा छत्तीसगढ़ राज्य प्रेस क्लब जैसा थोड़े ही है, तीनों विभाग अपनी आदी में आ gaye तो आप लोग तो भाग जाओगे , भुगतेगा राजेश शर्मा।